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भारत में सार्वजनिक स्थानों पर पेशाब की समस्या: एक गंभीर चुनौती और समाधान के उपाय

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लेखक: न्यूज़ टुडे इंडिया संवाददाता | प्रकाशित: 17 अप्रैल, 2025

भारत में स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। स्वच्छ भारत मिशन के तहत लाखों शौचालयों का निर्माण, सार्वजनिक शौचालयों की स्थापना और गरीब परिवारों को घरेलू शौचालय बनाने के लिए सब्सिडी जैसे प्रयास किए गए हैं। सड़कों और गलियों की दीवारों पर “यहाँ पेशाब करना मना है” जैसे संदेश लिखे गए हैं, फिर भी यह आम दृश्य है कि लोग इन निषेध संदेशों को अनदेखा कर उसी स्थान पर पेशाब करते हैं। यह न केवल स्वच्छता के लिए खतरा है, बल्कि पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर समस्या है। आखिर इस समस्या की जड़ क्या है, और इसका स्थायी समाधान कैसे हो सकता है? आइए, इस मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।

समस्या की गंभीरता और इसका प्रभाव

सार्वजनिक स्थानों पर पेशाब करना केवल एक सामाजिक समस्या नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़ा एक गंभीर मुद्दा है। पेशाब में मौजूद यूरिया जब बैक्टीरिया के संपर्क में आता है, तो यह अमोनिया और दुर्गंध पैदा करता है। यह न केवल वातावरण को दूषित करता है, बल्कि जलजनित रोगों जैसे डायरिया, हैजा और टाइफाइड के फैलने का कारण भी बनता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में हर साल 1,90,000 बच्चे डायरिया से संबंधित बीमारियों के कारण अपनी जान गंवाते हैं, जिसमें खुला मल और पेशाब एक प्रमुख कारक है। इसके अलावा, गंदी दीवारें और सड़कें शहरों की सुंदरता को प्रभावित करती हैं और पर्यटन पर भी नकारात्मक असर डालती हैं।

समस्या के कारण

इस समस्या के पीछे कई सामाजिक, सांस्कृतिक और बुनियादी कारण हैं, जिन्हें समझना जरूरी है:

  1. पुरानी आदतें और सांस्कृतिक मानसिकता: भारत में पहले शौचालयों की कमी के कारण लोग खुले में पेशाब करने के आदी थे। 2011 की जनगणना के अनुसार, उस समय आधे से अधिक भारतीय घरों में शौचालय नहीं थे। यह आदत आज भी ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में देखी जाती है। सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक ने कहा था कि भारत में स्वच्छता की संस्कृति विकसित करने की आवश्यकता है।
  2. सार्वजनिक शौचालयों की कमी और खराब स्थिति: हालांकि स्वच्छ भारत मिशन ने शौचालयों की संख्या बढ़ाई है, लेकिन कई सार्वजनिक शौचालय गंदे, टूटे-फूटे या बंद रहते हैं। कुछ शौचालय इतने दूर होते हैं कि लोग पास की दीवार को ही सुविधाजनक मान लेते हैं। महिलाओं और दिव्यांगों के लिए सुरक्षित और साफ शौचालयों की कमी इस समस्या को और गंभीर बनाती है।
  3. रखरखाव की कमी: सार्वजनिक शौचालयों के लिए बजट और गुणवत्तापूर्ण सामग्री की कमी के कारण ये जल्दी खराब हो जाते हैं। कई जगह शौचालयों की सफाई नियमित रूप से नहीं होती, जिसके कारण लोग इन्हें उपयोग करने से बचते हैं।
  4. कानून का कमजोर पालन: “यहाँ पेशाब करना मना है” जैसे संदेशों के बावजूद, नियम तोड़ने वालों पर कार्रवाई या जुर्माना कम ही होता है। एक बीबीसी रिपोर्ट में एक पुलिसकर्मी ने कहा था, “ऐसे मामलों में कार्रवाई का क्या मतलब?” यह ढीलापन लोगों को नियम तोड़ने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  5. जागरूकता और शिक्षा की कमी: स्वच्छ भारत मिशन ने स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाई है, लेकिन कई लोग अभी भी इसके महत्व को नहीं समझते। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, लोग खुले में पेशाब को स्वास्थ्य या पर्यावरण के लिए हानिकारक नहीं मानते।

सरकार और समाज के प्रयास

भारत सरकार और गैर-सरकारी संगठनों ने इस समस्या से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं:

  1. स्वच्छ भारत मिशन (2014): इस अभियान के तहत 100 मिलियन से अधिक घरेलू शौचालय बनाए गए हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक शौचालयों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ गरीब परिवारों को शौचालय निर्माण के लिए सब्सिडी दी गई है।
  2. सुलभ इंटरनेशनल: इस संगठन ने देशभर में 8,000 से अधिक सार्वजनिक शौचालय बनाए हैं और स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाई है। हालांकि, इन शौचालयों का रखरखाव एक चुनौती बना हुआ है।
  3. कानूनी कदम: 2019 में एक संसदीय समिति ने सार्वजनिक स्थानों पर पेशाब करने के खिलाफ केंद्रीय कानून बनाने और जुर्माने की सिफारिश की थी। 2015 में आगरा में 109 लोगों को इस अपराध के लिए जेल भेजा गया था, जो एक सख्त कार्रवाई का उदाहरण है।
  4. जागरूकता और शर्मिंदगी के तरीके: कुछ जगहों पर, जैसे राजस्थान में, स्वयंसेवकों ने ढोल बजाकर या सीटी मारकर लोगों को शर्मिंदा करने की कोशिश की। कई दीवारों पर धार्मिक प्रतीक या मजेदार नारे जैसे “गधे का पूत, यहाँ मत मूत” लिखे गए, लेकिन इनका असर सीमित रहा।
  5. नवाचार: लंदन में इस्तेमाल होने वाले “एंटी-पी पेंट” (जो पेशाब को वापस छिड़कता है) जैसे विचार भारत में भी चर्चा में आए हैं। कुछ कंपनियों, जैसे सोमनी बाथवेयर, ने स्मार्ट शौचालय डिज़ाइन किए हैं, लेकिन ये अभी व्यापक स्तर पर लागू नहीं हुए।
  6. न्यायिक हस्तक्षेप: 2024 में मद्रास हाई कोर्ट ने चेन्नई में सार्वजनिक शौचालयों के निजीकरण और उनके खराब रखरखाव के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया। 2015 में दिल्ली हाई कोर्ट ने धार्मिक प्रतीकों को दीवारों पर लगाने को अप्रभावी बताया था।

अब तक क्या काम नहीं कर रहा?

  • निषेध संदेश: “यहाँ पेशाब करना मना है” जैसे संदेशों का असर कम हो रहा है। लोग इन दीवारों को ही निशाना बनाते हैं।
  • खराब शौचालय: गंदे और असुरक्षित शौचालयों के कारण लोग खुले में जाना पसंद करते हैं।
  • सीमित कानूनी कार्रवाई: जुर्माने और सजा का डर कम होने से लोग बेफिक्र रहते हैं।
  • अस्थायी जागरूकता: शर्मिंदगी या अभियानों का असर अस्थायी होता है।

समाधान के उपाय

इस समस्या का स्थायी समाधान तभी संभव है, जब बुनियादी ढांचे, कानून और सामाजिक व्यवहार में बदलाव एक साथ आए। यहाँ कुछ सुझाव दिए गए हैं:

  1. साफ और सुरक्षित शौचालय: सार्वजनिक शौचालयों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ इनका नियमित रखरखाव जरूरी है। महिलाओं और दिव्यांगों के लिए अलग और सुरक्षित सुविधाएँ बनाई जाएँ। आधुनिक सामग्री और प्री-फैब्रिकेटेड डिज़ाइनों का उपयोग टिकाऊ शौचालयों के लिए किया जा सकता है।
  2. सख्त कानून और जुर्माना: नियम तोड़ने वालों पर भारी जुर्माना (जैसे 5,000 रुपये) और नियमित पुलिस निगरानी से डर पैदा हो सकता है।
  3. शिक्षा और जागरूकता: स्कूलों में बच्चों को स्वच्छता और शौचालय उपयोग की शिक्षा दी जाए। सामुदायिक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जाएँ, जिसमें स्थानीय नेताओं और प्रभावशाली लोगों को शामिल किया जाए।
  4. नवाचारों का उपयोग: “एंटी-पी पेंट” जैसे तकनीकी समाधान और स्मार्ट शौचालयों को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में आजमाया जाए।
  5. सामुदायिक सहभागिता: स्थानीय समुदायों को शौचालयों के रखरखाव और प्रबंधन में शामिल किया जाए, जैसा कि सुलभ इंटरनेशनल करता है। इससे लोगों में स्वामित्व की भावना आएगी।
  6. महिलाओं के लिए विशेष ध्यान: महिलाओं के लिए सुरक्षित और साफ शौचालयों की उपलब्धता बढ़ाई जाए, क्योंकि उनकी समस्या पुरुषों से कहीं अधिक गंभीर है।

निष्कर्ष

सार्वजनिक स्थानों पर पेशाब की समस्या केवल शौचालयों की कमी की नहीं, बल्कि सामाजिक मानसिकता, जागरूकता और कानून के पालन की कमी की भी है। स्वच्छ भारत मिशन ने इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन अब ध्यान शौचालयों के उपयोग, रखरखाव और सख्त कानूनी कार्रवाई पर होना चाहिए। यह तभी संभव है, जब सरकार, समाज और नागरिक मिलकर काम करें। हर नागरिक को यह समझना होगा कि स्वच्छता केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हमारी साझा जवाबदेही है। आइए, स्वच्छ भारत के सपने को साकार करने के लिए अपनी आदतों और व्यवहार में बदलाव लाएँ।

न्यूज़ टुडे इंडिया अपने पाठकों से अपील करता है कि वे स्वच्छता के प्रति जागरूक रहें और अपने आसपास साफ-सफाई बनाए रखें।

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