लेखक: न्यूज़ टुडे इंडिया संवाददाता | प्रकाशित: 17 अप्रैल, 2025
भारत, जो सदियों से विविधता में एकता और “वसुधैव कुटुम्बकम” (विश्व एक परिवार है) का प्रतीक रहा है, आज व्यक्तिगत घृणा के बढ़ते चलन से जूझ रहा है, जहाँ व्यक्तिगत प्रेम और करुणा की भावना लगातार कम होती जा रही है। यह बदलाव न केवल सामाजिक रिश्तों को तोड़ रहा है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य, जीवन की गुणवत्ता, और सामुदायिक एकता को भी प्रभावित कर रहा है। इतना ही नहीं, इस उदासीन जीवनशैली और नकारात्मकता ने भारत की जीवन प्रत्याशा को कम किया है, इसे वैश्विक खुशी सूचकांक (Happiness Index) में सबसे असंतुष्ट देशों की सूची में ला खड़ा किया है, और भाई-भाई के बीच लड़ाइयाँ आम हो गई हैं। क्या यह स्थिति भारतीय संस्कृति के मूल्यों से विचलन का परिणाम है, या आधुनिक चुनौतियाँ इसके पीछे हैं? आइए, इस जटिल मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।
व्यक्तिगत घृणा की बढ़ती प्रवृत्ति
आज के भारत में व्यक्तिगत स्तर पर नफरत और असहिष्णुता के उदाहरण हर कदम पर दिखाई देते हैं। पड़ोसियों के बीच छोटी-छोटी बातों पर झगड़े, सड़क पर अजनबियों के साथ तीखी नोक-झोंक, कार्यस्थल पर सहकर्मियों के बीच ईर्ष्या, और परिवार में भाई-भाई की लड़ाइयाँ इसकी बानगी हैं। 2023 की एक सामाजिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, 65% भारतीयों ने स्वीकार किया कि वे अपने आस-पड़ोस या समुदाय में व्यक्तिगत मतभेदों को सुलझाने में असफल रहे हैं। इसके विपरीत, व्यक्तिगत प्रेम—जैसे मदद करना, क्षमा करना, या एक-दूसरे का सम्मान करना—लगभग लुप्तप्राय हो गया है। यह बदलाव रिश्तों को तोड़ने के साथ-साथ सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर रहा है।
इसके गहरे प्रभाव
इस व्यक्तिगत घृणा ने भारत पर गंभीर प्रभाव डाले हैं:
- जीवन प्रत्याशा में कमी: उदासीन जीवनशैली, तनाव, और नकारात्मकता के कारण भारत में औसत जीवन प्रत्याशा 2015 के 68.3 वर्षों से घटकर 2023 में 67.2 वर्ष हो गई है (विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े)। मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ, जैसे अवसाद और चिंता, 30% बढ़ी हैं।
- खुशी सूचकांक में पतन: संयुक्त राष्ट्र के 2024 के विश्व खुशी रिपोर्ट के अनुसार, भारत 137 देशों की सूची में 126वें स्थान पर है, जो इसे सबसे असंतुष्ट देशों में ला खड़ा करता है। नॉर्वे (पहला) और डेनमार्क जैसे देशों के विपरीत, यहाँ प्रेम और संतुष्टि की कमी साफ दिखती है।
- भाई-भाई में लड़ाई: पारिवारिक संपत्ति, पैसों, या छोटी-मोटी बातों पर भाई-भाई के बीच झगड़े आम हो गए हैं। 2022 में, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने दर्ज की गई 15,000 से अधिक पारिवारिक विवादों में 40% भाई-भाई के झगड़े थे।
इसके कारण
इस बदलती मानसिकता के पीछे कई जटिल कारण हैं:
- सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव: पारंपरिक “वसुधैव कुटुम्बकम” का आदर्श कमजोर पड़ गया है। शहरीकरण और व्यक्तिवाद ने लोगों को स्वार्थी बनाया है, जहाँ अपने फायदे को दूसरों से ऊपर रखा जाता है।
- डिजिटल और मीडिया प्रभाव: सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग, फर्जी खबरें, और नफरत फैलाने वाले ग्रुप्स ने व्यक्तिगत घृणा को हवा दी है। 2024 में, भारत में 1,200 से अधिक ऑनलाइन नफरत फैलाने वाली घटनाएँ दर्ज की गईं।
- आर्थिक असुरक्षा: बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी (15-34 आयु वर्ग में 27% युवा बेरोजगार), और असमानता ने लोगों में चिड़चिड़ापन और ईर्ष्या को जन्म दिया है। गरीब और अमीर के बीच की खाई यह और बढ़ाती है।
- राजनीतिक ध्रुवीकरण: राजनीतिक दलों द्वारा समुदायों को बांटने की रणनीति ने व्यक्तिगत स्तर पर भी नफरत को बढ़ाया है। 2022 के चुनावों के दौरान कई जगहों पर व्यक्तिगत झगड़े साम्प्रदायिक हिंसा में बदल गए।
- शिक्षा और मूल्यांकन की कमी: आधुनिक शिक्षा प्रणाली में नैतिकता, सहानुभूति, और प्रेम पर कम ध्यान दिया जाता है। नई पीढ़ी में प्रतिस्पर्धा और सफलता की होड़ हावी हो गई है।
- उदासीन जीवनशैली: तेज रफ्तार जीवन, काम का दबाव, और सामाजिक अलगाव ने लोगों को अकेला और उदास बनाया है, जो नफरत को बढ़ावा देता है।
हाल के उदाहरण
- 2024, मुंबई: एक सड़क पर पार्किंग विवाद के कारण दो पड़ोसियों के बीच हिंसक झगड़ा हुआ, जिसमें एक व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हुआ।
- 2023, दिल्ली: सोशल मीडिया पर एक छोटी सी टिप्पणी पर ट्रोलिंग इतनी बढ़ी कि पीड़ित को मानसिक तनाव के कारण इलाज लेना पड़ा।
- 2022, बेंगलुरु: एक कॉलोनी में पानी के बंटवारे को लेकर झगड़े में 5 परिवार आपस में टूट गए। भाई-भाई की लड़ाई में संपत्ति विवाद ने हिंसा को जन्म दिया।
- 2023, लखनऊ: दो भाइयों के बीच जमीन के बंटवारे को लेकर मारपीट हुई, जिसमें एक की मौत हो गई।
समाधान के उपाय
इस समस्या से निपटने के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयास जरूरी हैं:
- शिक्षा में नैतिकता: स्कूलों में सहानुभूति, क्षमा, और प्रेम पर जोर दिया जाए। योग, ध्यान, और सामुदायिक सेवा को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।
- सामुदायिक पहल: पड़ोस और मोहल्ला समितियों के माध्यम से एक-दूसरे को जानने और मदद करने के कार्यक्रम शुरू हों, जैसे सामूहिक भोजन या उत्सव।
- डिजिटल जागरूकता: सोशल मीडिया पर सकारात्मक संदेशों को बढ़ावा देने और नफरत फैलाने वालों पर सख्त कार्रवाई हो। साइबर सेल को मजबूत किया जाए।
- आर्थिक समानता: सरकार को गरीबी और बेरोजगारी कम करने के लिए रोजगार (जैसे सkil इंडिया) और कल्याण योजनाओं पर ध्यान देना चाहिए।
- सांस्कृतिक पुनर्जागरण: त्योहारों, सांस्कृतिक आयोजनों, और धार्मिक संवाद के जरिए एकता और प्रेम को बढ़ावा दिया जाए।
- मानसिक स्वास्थ्य सहायता: काउंसलिंग केंद्र और हेल्पलाइन शुरू की जाएँ, ताकि उदासीनता और तनाव से निपटा जा सके।
निष्कर्ष
भारत में व्यक्तिगत घृणा का बढ़ना एक चिंताजनक संकेत है, जो हमारे सामाजिक ताने-बाने, जीवन प्रत्याशा, और खुशी सूचकांक को कमजोर कर रहा है। भाई-भाई की लड़ाइयाँ और उदासीन जीवनशैली ने इस समस्या को और गहरा किया है। व्यक्तिगत प्रेम और करुणा की भावना को पुनर्जीवित करना आज की जरूरत है। यह तभी संभव है, जब हम अपने व्यवहार में बदलाव लाएँ, एक-दूसरे के प्रति सम्मान और सहयोग की भावना अपनाएँ, और सरकार व समाज मिलकर प्रयास करें। न्यूज़ टुडे इंडिया अपील करता है कि हम सब प्रेम, शांति, और सकारात्मकता के साथ अपने समाज को बेहतर बनाएँ। क्या हम इस बदलाव के लिए तैयार हैं?