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भगवद गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को की विश्व स्मृति रजिस्टर में शामिल किया गया

भगवद गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को की विश्व स्मृति रजिस्टर में शामिल किया गया
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भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को एक बार फिर वैश्विक मंच पर सम्मान मिला है। यूनेस्को ने भारत के दो प्राचीन और विश्व प्रसिद्ध ग्रंथों, भगवद गीता और नाट्यशास्त्र, को अपनी विश्व स्मृति रजिस्टर (Memory of the World Register) में शामिल करने की घोषणा की है। यह सम्मान न केवल भारत के लिए गर्व का विषय है, बल्कि यह विश्व भर में भारतीय दर्शन, कला, और संस्कृति के महत्व को भी रेखांकित करता है। इस लेख में हम इन दोनों ग्रंथों के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक महत्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे, साथ ही यूनेस्को के इस निर्णय के प्रभाव और भारत के लिए इसके मायने भी समझेंगे।

भगवद गीता: आध्यात्मिक दर्शन का आधारभूत ग्रंथ

भगवद गीता, जिसे अक्सर केवल ‘गीता’ कहा जाता है, हिंदू धर्म का एक पवित्र और दार्शनिक ग्रंथ है। यह महाभारत के भीष्म पर्व का हिस्सा है और इसमें 18 अध्यायों में कुल 700 श्लोक हैं। यह ग्रंथ भगवान श्रीकृष्ण और पांडव राजकुमार अर्जुन के बीच युद्ध के मैदान, कुरुक्षेत्र, में हुए संवाद का एक संकलन है। गीता में जीवन, धर्म, कर्म, और मोक्ष जैसे गहन विषयों पर चर्चा की गई है, जो इसे न केवल हिंदुओं के लिए, बल्कि विश्व भर के दार्शनिकों और विचारकों के लिए प्रासंगिक बनाती है।

गीता का मूल संदेश कर्मयोग, भक्तियोग, और ज्ञानयोग के माध्यम से जीवन के उद्देश्य को समझने पर केंद्रित है। यह ग्रंथ व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करने और जीवन के नैतिक और आध्यात्मिक संकटों का सामना करने के लिए प्रेरित करता है। श्रीकृष्ण अर्जुन को सिखाते हैं कि सच्चा कर्म वह है जो निस्वार्थ भाव से, बिना फल की इच्छा के किया जाए। यह विचार आज भी आधुनिक जीवन में प्रासंगिक है, जहां लोग अक्सर भौतिक सफलता के पीछे भागते हैं और आंतरिक शांति की तलाश में भटकते हैं।

गीता का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं है। यह विश्व भर में विभिन्न भाषाओं में अनुवादित हो चुका है और इसे पश्चिमी दार्शनिकों, जैसे राल्फ वाल्डो इमर्सन, हेनरी डेविड थोरो, और आधुनिक युग में जे. रॉबर्ट ओपनहाइमर जैसे वैज्ञानिकों ने भी पढ़ा और सराहा है। गीता की शिक्षाएं सार्वभौमिक हैं और यह विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत रही हैं।

नाट्यशास्त्र: भारतीय कला और नाटक का आधार

नाट्यशास्त्र, जिसे भरतमुनि द्वारा रचित माना जाता है, भारतीय कला, नाटक, और प्रदर्शन कला का एक प्राचीन ग्रंथ है। यह ग्रंथ लगभग 2000 वर्ष पुराना है और इसमें नाटक, नृत्य, संगीत, और अभिनय के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की गई है। नाट्यशास्त्र को भारतीय शास्त्रीय नृत्य और नाटक का आधार माना जाता है, और यह कला के क्षेत्र में एक विश्वकोश की तरह है।

नाट्यशास्त्र में ‘रस’ सिद्धांत का विशेष उल्लेख है, जो कला के भावनात्मक प्रभाव को समझने का आधार है। भरतमुनि ने नौ रसों (नवरस) की अवधारणा प्रस्तुत की, जिनमें श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, अद्भुत, और शांत शामिल हैं। ये रस दर्शकों में विभिन्न भावनाओं को जागृत करते हैं और कला के माध्यम से मानवीय अनुभव को व्यक्त करने में मदद करते हैं।

नाट्यशास्त्र केवल नाटक और नृत्य तक सीमित नहीं है। इसमें मंच सज्जा, वेशभूषा, अभिनय तकनीक, संगीत, और यहां तक कि दर्शकों की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं पर भी चर्चा की गई है। यह ग्रंथ भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों, जैसे भरतनाट्यम, कथक, और ओडिसी, के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा, नाट्यशास्त्र ने भारतीय सिनेमा और आधुनिक थिएटर को भी प्रभावित किया है।

यूनेस्को की विश्व स्मृति रजिस्टर: एक वैश्विक सम्मान

यूनेस्को की विश्व स्मृति रजिस्टर एक अंतरराष्ट्रीय पहल है, जिसका उद्देश्य विश्व के महत्वपूर्ण दस्तावेजों, पांडुलिपियों, और सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करना और उनकी पहचान को बढ़ावा देना है। इस रजिस्टर में शामिल होने का मतलब है कि इन ग्रंथों को वैश्विक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता दी गई है। भगवद गीता और नाट्यशास्त्र का इस रजिस्टर में शामिल होना भारत के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।

यूनेस्को का यह कदम न केवल इन ग्रंथों के संरक्षण को सुनिश्चित करता है, बल्कि यह विश्व भर में भारतीय संस्कृति और दर्शन के प्रति जागरूकता भी बढ़ाता है। यह निर्णय भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक मंच पर और अधिक प्रासंगिक बनाता है। इसके अलावा, यह युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जुड़ने और प्राचीन ज्ञान को समझने के लिए प्रेरित करता है।

भारत के लिए इसका महत्व

भगवद गीता और नाट्यशास्त्र का यूनेस्को की विश्व स्मृति रजिस्टर में शामिल होना भारत के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। सबसे पहले, यह भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को वैश्विक स्तर पर मान्यता देता है। यह भारत के प्राचीन ज्ञान और कला को विश्व के सामने एक नई रोशनी में प्रस्तुत करता है।

दूसरा, यह भारत के शैक्षिक और सांस्कृतिक संस्थानों के लिए एक अवसर है कि वे इन ग्रंथों के अध्ययन और संरक्षण को और अधिक बढ़ावा दें। विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों, और सांस्कृतिक संगठनों को अब इन ग्रंथों के प्रचार-प्रसार के लिए नए संसाधन और प्रेरणा मिलेगी।

तीसरा, यह भारत के पर्यटन उद्योग के लिए भी लाभकारी हो सकता है। यूनेस्को की मान्यता के बाद, विश्व भर से लोग भारत के सांस्कृतिक केंद्रों, जैसे कुरुक्षेत्र (जहां गीता का उपदेश हुआ) और प्राचीन नाट्य मंदिरों, की ओर आकर्षित हो सकते हैं। यह भारत की सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देगा और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा।

भगवद गीता और नाट्यशास्त्र का आधुनिक प्रासंगिकता

आज के युग में, जब विश्व विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रहा है, भगवद गीता और नाट्यशास्त्र की शिक्षाएं पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। गीता की शिक्षाएं हमें तनाव, अनिश्चितता, और नैतिक दुविधाओं से निपटने में मदद कर सकती हैं। इसका कर्मयोग हमें यह सिखाता है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, भले ही परिस्थितियां कितनी भी कठिन हों।

इसी तरह, नाट्यशास्त्र की शिक्षाएं हमें कला के माध्यम से भावनाओं को व्यक्त करने और सामाजिक संदेशों को प्रसारित करने का रास्ता दिखाती हैं। आज के डिजिटल युग में, जहां सिनेमा, थिएटर, और डिजिटल मीडिया का महत्व बढ़ रहा है, नाट्यशास्त्र की तकनीकें और सिद्धांत अभी भी प्रासंगिक हैं। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि कला केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का एक शक्तिशाली माध्यम भी हो सकती है।

भविष्य की संभावनाएं

यूनेस्को की इस मान्यता के बाद, भगवद गीता और नाट्यशास्त्र के अध्ययन और प्रचार के लिए कई नए अवसर खुलेंगे। भारत सरकार, सांस्कृतिक संगठन, और शैक्षिक संस्थान इन ग्रंथों के डिजिटलीकरण, अनुवाद, और वैश्विक प्रचार पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। इसके अलावा, इन ग्रंथों पर आधारित शैक्षिक पाठ्यक्रम, कार्यशालाएं, और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं।

यह भी महत्वपूर्ण है कि इन ग्रंथों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाया जाए। डिजिटल प्लेटफॉर्म, जैसे मोबाइल ऐप्स, ऑनलाइन कोर्स, और सोशल मीडिया, के माध्यम से इन ग्रंथों की शिक्षाओं को सरल और आकर्षक तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता है। इससे न केवल भारत में, बल्कि विश्व भर में लोग इन ग्रंथों के महत्व को समझ सकेंगे।

निष्कर्ष

भगवद गीता और नाट्यशास्त्र का यूनेस्को की विश्व स्मृति रजिस्टर में शामिल होना भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। यह न केवल इन ग्रंथों के वैश्विक महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि भारत को अपनी प्राचीन ज्ञान परंपरा पर गर्व करने का एक और कारण देता है। यह समय है कि हम इन ग्रंथों की शिक्षाओं को अपनाएं, उन्हें संरक्षित करें, और अगली पीढ़ियों तक पहुंचाएं। न्यूज़ टुडे इंडिया की ओर से हम इस उपलब्धि पर सभी भारतीयों को बधाई देते हैं और आशा करते हैं कि यह सम्मान भारतीय संस्कृति को और अधिक वैश्विक पहचान दिलाएगा।

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