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दूसरी बेटी की हत्या: एक दर्दनाक कहानी और भारत में फैली पुरानी बीमारी

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एक छोटे से गाँव में, राजस्थान के झुंझुनू जिले की श्री राम कॉलोनी में, एक ऐसी कहानी शुरू हुई जो हर इंसान के दिल को दहला देती है। 22 साल की आंचकी देवी ने 9 महीने तक अपनी कोख में एक बच्ची को पाला। उसने उसे जन्म दिया, और 17 दिन तक अपनी गोद में लोरी गाकर सुलाया। उसकी छोटी-छोटी उंगलियाँ और मासूम मुस्कान घर में खुशियाँ बिखेर रही थीं। लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नहीं चली। यह उनकी दूसरी लड़की थी, और परिवार की सोच ने उसकी जिंदगी को अंधेरे में डाल दिया।

जैसे ही पति और ससुराल वालों को पता चला कि बच्ची लड़की है, उनके चेहरे पर गुस्सा और नफरत छा गई। वे बार-बार कहते, “हमें बेटा चाहिए था, ये क्यों आई?” आंचकी की दुनिया उजड़ने लगी। घर में मासूम को जगह नहीं मिली। 17 मार्च 2025 की रात, आंचकी देवी ने अपने हाथों से अपनी बच्ची को पानी की टंकी में डाल दिया। उसने टंकी का ढक्कन बंद कर दिया, और उसकी मासूम साँसें थम गईं। सुबह जब सच सामने आया, पोस्टमार्टम ने बताया कि उसकी मौत डूबने से हुई थी। आंचकी की आँखों में आंसुओं का सागर था, “मैंने उसे 9 महीने तक रखा, 17 दिन पाला, फिर क्यों मारा मेरी बच्ची को?”

पुलिस ने तुरंत केस दर्ज किया। कोतवाली थाना के एसएचओ नारायण सिंह ने बताया कि आंचकी देवी को हिरासत में लिया गया है, और पूछताछ चल रही है। लेकिन यह सिर्फ एक घटना नहीं है—यह भारत के पूरे देश में फैली एक सदियों पुरानी बीमारी का हिस्सा है। महिला भ्रूण हत्या और लड़कियों की हत्या एक पैंडेमिक की तरह है, जो समाज की जड़ों में समाई हुई है।

कहानी का विस्तार: एक मां का दर्द

आंचकी देवी की जिंदगी एक साधारण गृहिणी की थी। उसका पति एक छोटे से दुकान पर काम करता था, और ससुराल में सास-ससुर और दो भाई थे। जब पहली बेटी हुई, तो भी परिवार नाखुश था, लेकिन दूसरी लड़की ने उनके धैर्य को तोड़ दिया। गाँव में लोगों की बातें और सामाजिक दबाव ने आंचकी पर दबाव डाला। रात को, जब घर में सन्नाटा था, उसने अपनी बच्ची को टंकी में डाला। उसकी आँखों में आंसू थे, लेकिन उसकी आवाज दब गई। यह दर्द सिर्फ आंचकी का नहीं, बल्कि पूरे भारत की उन मांओं का है जो लड़कियों को खोती हैं।

भारत में महिला भ्रूण हत्या और लड़कियों की हत्या का इतिहास

यह समस्या नई नहीं है। सदियों पहले, जब हिंदू समाज में पुत्र को धर्म और वंश का वाहक माना जाता था, लड़कियों को कम आँका गया। मुगल काल और ब्रिटिश राज में भी यह सोच बनी रही। 20वीं सदी में अल्ट्रासाउंड और मेडिकल टेक्नोलॉजी के आने से भ्रूण लिंग परीक्षण शुरू हुआ, जिसने महिला भ्रूण हत्या को और बढ़ाया। 1994 में PCPNDT एक्ट (Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques Act) बना, लेकिन इसे लागू करना मुश्किल रहा। गाँवों में डॉक्टर और नर्स गुप्त रूप से लिंग जांच करते हैं, और लड़कियों को गर्भ में ही खत्म कर दिया जाता है।

लड़कियों की हत्या (Infanticide) का इतिहास भी पुराना है। तमिलनाडु और केरल में 19वीं सदी में बाल हत्या की प्रथा थी, जहाँ नवजात लड़कियों को मार दिया जाता था। आज यह उत्तर भारत और पश्चिमी राज्यों में ज्यादा देखी जाती है, जैसे हरियाणा, राजस्थान, और पंजाबसामाजिक दबाव, दहेज की चिंता, और पुत्र की चाहत इसके पीछे के कारण हैं।

देशव्यापी संकट: एक महामारी की तरह

यह समस्या सिर्फ झुंझुनू या राजस्थान तक सीमित नहीं। हरियाणा में लिंग अनुपात 832, उत्तर प्रदेश में 850, और मध्य प्रदेश में 879 लड़कियों प्रति 1000 लड़कों का है। बिहार, राजस्थान, और गुजरात में भी लड़कियों की हत्या के मामले सामने आते हैं। शहरी इलाकों में प्राइवेट क्लीनिक अल्ट्रासाउंड से लिंग बताते हैं, और गाँवों में घरेलू तरीके जैसे जहर या दूध में डूबाना इस्तेमाल होते हैं। यह पैंडेमिक लड़कियों की आबादी को कम कर रही है, जो समाज के लिए खतरा है।

कारण: सोच और व्यवस्था

  • सामाजिक दबाव: गाँवों में लड़कियों को दहेज और सुरक्षा का बोझ माना जाता है।
  • आर्थिक कारण: गरीबी में पुत्र को कमाने वाला माना जाता है, जबकि लड़कियाँ पर खर्च।
  • धार्मिक मान्यताएँ: कुछ समुदायों में पुत्र को मोक्ष का मार्ग माना जाता है।
  • शिक्षा की कमी: माता-पिता को लड़कियों के योगदान का पता नहीं।
  • कानून का कमजोर होना: PCPNDT एक्ट लागू करने में सरकार और पुलिस नाकाम रही।

प्रभाव: समाज पर गहरा घाव

  • लिंग अनुपात: हरियाणा और पंजाब में लड़कियों की कमी से बाल विवाह और अंतर-राज्य विवाह बढ़े।
  • अपराध: लड़कियों की कमी से हिंसा, अपहरण, और ट्रैफिकिंग में वृद्धि हुई।
  • आर्थिक नुकसान: महिलाओं की भागीदारी कम होने से जीडीपी प्रभावित हो रही है।
  • सामाजिक असंतुलन: पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या कम होने से परिवार टूट रहे हैं।

आंकड़े और तथ्य

  • NCRB 2023: लड़कियों के खिलाफ अपराध में 5% की वृद्धि।
  • NFHS-5: लिंग अनुपात राष्ट्रीय स्तर पर 911, लेकिन कुछ राज्यों में 800 से नीचे।
  • UNICEF: हर साल लाखों लड़कियाँ गर्भ में या जन्म के बाद मारी जाती हैं।
  • सर्वे: 50% ग्रामीण परिवार अभी भी पुत्र को तरजीह देते हैं।

एक उम्मीद की किरण: मैं, अंजलि जोशी

इस अंधेरे में एक रोशनी हूँ मैं, अंजलि जोशी। मैं किसी एनजीओ के साथ नहीं हूँ, बल्कि खुद ही ऐसी बच्चियों को बचाने और पालने के लिए तैयार हूँ। इस झुंझुनू की खबर ने मेरा दिल तोड़ दिया। मैं हर लड़की को अपने घर में प्यार दूँगी, उसे शिक्षा दूँगी, और उसके सपनों को उड़ान भरने का मौका दूँगी। मैं गाँव-गाँव जाऊँगी, लोगों से मिलूँगी, और उन्हें समझाऊँगी कि बेटियां भी भविष्य हैं। मेरा मकसद है कि कोई मासूम इस क्रूरता का शिकार न बने। मैं जागरूकता अभियान चलाऊँगी, मांओं को हिम्मत दूँगी, और समाज को बदलने की कोशिश करूँगी।

समाधान: एक नई शुरुआत

  • जागरूकता: स्कूल, मंदिर, और पंचायत में लड़कियों के महत्व की बात हो।
  • शिक्षा: माता-पिता को लड़कियों की शिक्षा पर जोर देना चाहिए।
  • कानून: PCPNDT एक्ट को सख्ती से लागू करना होगा, और डॉक्टरों पर नजर रखनी होगी।
  • सपोर्ट: मांओं को सामाजिक और आर्थिक मदद देनी चाहिए, ताकि वे बेटियों को बचा सकें।
  • प्रोत्साहन: सरकार को लड़कियों के जन्म पर इनाम या सहायता देनी चाहिए।

विस्तार: हर राज्य की कहानी

  • हरियाणा: यहाँ लड़कियों की कमी से पुरुष दूसरे राज्यों से विवाह कर रहे हैं।
  • उत्तर प्रदेश: गाँवों में जहर देकर नवजात मारी जाती हैं।
  • तमिलनाडु: पुराने समय में बाल हत्या की प्रथा थी, जो अब कम हुई लेकिन खत्म नहीं हुई।
  • पंजाब: शहरी इलाकों में अल्ट्रासाउंड से भ्रूण हत्या होती है।

व्यक्तिगत कहानियाँ

  • रानी (नाम बदला हुआ), मध्य प्रदेश की एक मां, ने बताया कि उसकी बेटी को सास ने जहर दिया क्योंकि पति ने मना किया।
  • सुमन, हरियाणा से, ने कहा कि उसकी गर्भवती दोस्त को परिवार ने अल्ट्रासाउंड के बाद दबाव बनाया।

मेरी भूमिका: अंजलि जोशी

मैं, अंजलि जोशी, इस लड़ाई में अकेले आगे बढ़ रही हूँ। मैं लड़कियों को गोद लेना चाहती हूँ, उन्हें स्कूल भेजना चाहती हूँ, और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहती हूँ। मैं ग्रामीण इलाकों में महिलाओं से मिलूँगी, उनकी दिक्कतें सुनूँगी, और जागरूकता फैलाऊँगी। मेरा सपना है कि हर बच्ची को प्यार और सम्मान मिले।

निष्कर्ष: एक नई सुबह

यह कहानी हमें झकझोरती है। लड़कियों को बचाना और समाज को बदलना हम सबकी जिम्मेदारी है। सरकार, पुलिस, और लोगों को मिलकर काम करना होगा। मैं, अंजलि जोशी, इस बदलाव की शुरुआत करूँगी। हर बच्ची एक उम्मीद है—आइए, उसे बचाएं और बेटी बचाओ की मुहिम को मजबूत करें।

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