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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

चीन की दुर्लभ पृथ्वी निर्यात पर पाबंदी

China imposed fresh restrictions on the export of seven rare earth elements (REEs)
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दुनिया की आर्थिक और भू-राजनीति की स्थिति चर्चा में है। चीन ने हाल ही में दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (Rare Earth Elements – REEs) के निर्यात पर सख्ती कर दी है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत जैसे देशों के लिए बड़ी परेशानी बन गया है। यह कदम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नए टैरिफ के जवाब में उठाया गया है। हम इस रिपोर्ट में चीन की इस नीति, इसके प्रभाव, और चीन के इतिहास, अर्थव्यवस्था, राजनीति, और सैन्य शक्ति के बारे में आसान भाषा में बताएंगे, जो सिविल सेवा के छात्रों के लिए मददगार होगा।

चीन की दुर्लभ पृथ्वी निर्यात पाबंदी: शुरुआती जानकारी

चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने सात दुर्लभ पृथ्वी तत्वोंसमेरियम, गैडोलिनियम, टेरबियम, डिस्प्रोसियम, ल्यूटेटियम, स्कैंडियम, और यिट्रियम—के निर्यात के लिए खास लाइसेंस की जरूरत बनाई है। यह कदम ट्रंप ने चीनी सामानों पर 54% टैरिफ लगाने के बाद उठाया गया है। ये तत्व रक्षा, इलेक्ट्रिक वाहन, अर्धचालक, और नवीकरणीय ऊर्जा के लिए जरूरी हैं। चीन, जो दुर्लभ पृथ्वी उत्पादन का 90% और प्रसंस्करण का 99% करता है, इस कदम से दुनिया पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है।

चीन ने पहले भी 2010 में जापान के साथ झगड़े और 2023-25 में गैलियम, जर्मेनियम, एंटीमनी, ग्रेफाइट, और टंगस्टन पर पाबंदी लगाई थी। यह नया कदम एक सोची-समझी रणनीति है, जो दुनिया की तकनीक और सैन्य पर निर्भरता को प्रभावित करेगा। लेकिन लाइसेंस सिस्टम अभी पूरा नहीं हुआ, जिससे निर्यात में देरी हो रही है।

दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की खोज और विकास

दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की खोज 18वीं और 19वीं सदी में हुई। स्वीडिश वैज्ञानिक जोहान गडोलिन ने 1794 में यिट्रियम की पहचान की थी। इन्हें “दुर्लभ” इसलिए कहते हैं क्योंकि इन्हें साफ करना मुश्किल है, न कि इसलिए कि ये कम हैं। चीन ने 1980 के दशक में इनके खनन और प्रसंस्करण में निवेश शुरू किया और 1990 के दशक तक इसमें नंबर एक बन गया।

चीन की नीति का मकसद

चीन का यह कदम सिर्फ आर्थिक जवाब नहीं, बल्कि एक चालाक रणनीति है। इसका मकसद है कि दूसरे देश अपनी तकनीकी निर्भरता कम करें और नए स्रोत ढूंढें, जो समय और पैसा मांगेगा। साथ ही, यह चीन को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूत बनाएगा।

चीन: सिविल सेवा के लिए जानकारी

इतिहास और भूगोल

चीन, जिसे पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना कहते हैं, एशिया का सबसे बड़ा देश है और 9.6 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फैला है। इसका इतिहास 5000 साल पुराना है, जिसमें शांग राजवंश (1600-1046 ईसा पूर्व) से लेकर किंग राजवंश (1644-1911) तक की सभ्यताएं हैं। 1911 में किंग राजवंश खत्म होने के बाद गणराज्य बना, लेकिन 1949 में माओ जेडोंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) ने पीपुल्स रिपब्लिक शुरू किया।

चीन की भौगोलिक स्थिति इसे खास बनाती है। यह रूस, भारत, मंगोलिया, उत्तर कोरिया, और दक्षिण चीन सागर से घिरा है। हिमालय, यांग्त्ज़ी नदी, और गंगा के उद्गम क्षेत्र इसके प्राकृतिक संसाधन को बढ़ाते हैं। दुर्लभ पृथ्वी के भंडार, खासकर भीतरी मंगोलिया, जिआंग्शी, और शांक्सी में, इसे दुनिया में ताकतवर बनाते हैं।

राजनीति और शासन

चीन में सिर्फ एक पार्टी की शासन व्यवस्था है, जहां कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) सबसे बड़ी है। अब शी जिनपिंग, जो 2012 से राष्ट्रपति हैं, ने सारी शक्ति अपने हाथ में ली है। 2018 में संविधान में बदलाव के बाद वे आजीवन राष्ट्रपति बन सकते हैं, जो केंद्र सरकार को मजबूत करता है। CPC नीतियां, अर्थव्यवस्था, और सैन्य पर काबू रखती है।

राष्ट्रीय पीपुल्स कांग्रेस (NPC) कानून बनाती है, लेकिन असली शक्ति पोलित ब्यूरो और स्टैंडिंग कमेटी के पास है। सिविल सेवा के छात्रों को पता होना चाहिए कि चीन की नीतियां, जैसे दुर्लभ पृथ्वी पाबंदी, आर्थिक लाभ, राष्ट्रीय सुरक्षा, और वैश्विक प्रभाव को ध्यान में रखकर बनती हैं।

अर्थव्यवस्था

चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसका जीडीपी 2024 में लगभग 18 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है। यह विनिर्माण, प्रौद्योगिकी, और बुनियादी ढांचा में आगे है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से चीन ने अफ्रीका, एशिया, और यूरोप में व्यापार बढ़ाया है।

दुर्लभ पृथ्वी उद्योग चीन की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा है। 1990 के दशक से, चीन ने उत्पादन और प्रसंस्करण में दबदबा बनाया। बैटौ स्टील और चाइना मिनमेटल्स जैसे सरकारी कंपनियां इसे चलाती हैं। यह न सिर्फ आय देता है, बल्कि तकनीकी प्रभुत्व भी बनाए रखता है।

सैन्य शक्ति

चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है, जिसमें 20 लाख सक्रिय और 50 लाख रिजर्व सैनिक हैं। यह नौसेना, वायु सेना, और मिसाइल बलों को नया रूप दे रही है। जे-20 फाइटर, हाइपरसोनिक मिसाइलें, और कृत्रिम बुद्धिमत्ता इसके सैन्य प्रभुत्व को दिखाती हैं।

दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप और ताइवान के पास सैन्य गतिविधि चीन की आक्रामक नीति को बताती है। दुर्लभ पृथ्वी सैन्य प्रौद्योगिकी, जैसे F-35 जेट और टॉमहॉक मिसाइलों में काम आते हैं। चीन की पाबंदी से अमेरिका की रक्षा पर असर पड़ सकता है, क्योंकि यह 70% आयात पर निर्भर है। सिविल सेवा के छात्रों को समझना चाहिए कि चीन सैन्य और आर्थिक शक्ति के लिए इन संसाधनों का इस्तेमाल करता है।

दुर्लभ पृथ्वी तत्वों का महत्व

दुर्लभ पृथ्वी तत्व 17 रासायनिक तत्वों का समूह है, जिसमें लैंथेनाइड श्रृंखला (सेरियम से ल्यूटेटियम तक) और स्कैंडियम और यिट्रियम शामिल हैं। ये अर्धचालक, चुंबक, लेजर, और एलसीडी स्क्रीन के लिए जरूरी हैं। भारी दुर्लभ पृथ्वी (जैसे डिस्प्रोसियम और टेरबियम) रक्षा और उन्नत तकनीक में खास हैं।

चीन इन तत्वों के खनन और प्रसंस्करण में सबसे आगे है। 2023 तक, इसने भारी REE प्रसंस्करण का 99% कंट्रोल किया, जिसमें वियतनाम का एक रिफाइनरी बंद होने से मदद नहीं मिली। यह एकाधिकार दुनिया की आपूर्ति श्रृंखला को कमजोर बनाता है।

खनन और प्रसंस्करण

चीन में दुर्लभ पृथ्वी खनन खुली खदान और इन-सITU लीचिंग से होता है। भीतरी मंगोलिया का बेयुन ओबो क्षेत्र दुनिया का सबसे बड़ा स्रोत है। प्रसंस्करण में रेडियोधर्मी अपशिष्ट और जहरीले रसायन इस्तेमाल होते हैं, जो पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं।

पाबंदी के प्रभाव

संयुक्त राज्य अमेरिका पर प्रभाव

अमेरिका, जो रक्षा और प्रौद्योगिकी में इन तत्वों पर निर्भर है, इस पाबंदी से परेशान होगा। F-35 जेट, टॉमहॉक मिसाइलें, और एमआरआई स्कैनर इन पर निर्भर हैं। लाइसेंस सिस्टम की अनिश्चितता से आपूर्ति में रुकावट आएगी, जिससे उत्पादन में देरी हो सकती है। CSIS के अनुसार, यह अमेरिकी रक्षा उद्योग को नुकसान पहुँचा सकता है।

भारत पर प्रभाव

भारत, जो अपनी रक्षा और इलेक्ट्रॉनिक्स को बढ़ा रहा है, इस पाबंदी से प्रभावित हो सकता है। हालाँकि, कच्छ (गुजरात) और जमशेदपुर (झारखंड) में खनन शुरू हो गया है, लेकिन प्रसंस्करण की क्षमता कम है। यह आत्मनिर्भरता का मौका भी देता है।

वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला

चीन की पाबंदी से इलेक्ट्रिक वाहन, सौर पैनल, और स्मार्टफोन उद्योग पर असर पड़ेगा। जापान, दक्षिण कोरिया, और यूरोपीय संघ नए स्रोत ढूंढ रहे हैं, लेकिन यह प्रक्रिया लंबी चलेगी।

चीन की रणनीति और इतिहास

चीन ने 2010 में जापान के साथ झगड़े में पहली बार दुर्लभ पृथ्वी को हथियार बनाया था, जब एक चीनी मछुआरे के जहाज और जापानी तटरक्षक की टक्कर के बाद निर्यात कम कर दिया गया। 2023-25 में उसने रणनीतिक सामग्रियों पर पाबंदियाँ बढ़ाईं। यह सिर्फ व्यापारिक जवाब नहीं, बल्कि वैश्विक निर्भरता बढ़ाने की रणनीति है।

पर्यावरणीय प्रभाव

दुर्लभ पृथ्वी खनन और प्रसंस्करण से पर्यावरण को नुकसान होता है। बैटौ में प्रदूषण और रेडियोधर्मी रिसाव चिंता का विषय है। चीन ने 2011 में प्रदूषण मानक बनाए, लेकिन निर्यात नियंत्रण आर्थिक लाभ पर ज्यादा ध्यान देता है।

WTO विवाद

2012 में अमेरिका, यूरोपीय संघ, और जापान ने WTO में चीन की निर्यात पाबंदियों के खिलाफ शिकायत की थी। WTO ने कहा कि ये अनुचित हैं, लेकिन चीन ने अपनी नीतियों को बदला और केंद्र नियंत्रण बढ़ाया।

वैश्विक प्रतिक्रिया

अमेरिका ने डिफेंस प्रोडक्शन एक्ट से घरेलू उत्पादन बढ़ाया है। ऑस्ट्रेलिया और ब्राजील भी दुर्लभ पृथ्वी आपूर्ति को मजबूत कर रहे हैं। भारत को इस क्षेत्र में निवेश बढ़ाना होगा, और सरकार ने खनन नीति में बदलाव किया है।

निष्कर्ष

चीन की दुर्लभ पृथ्वी निर्यात पाबंदी एक जटिल भू-राजनीतिक कदम है, जो आर्थिक और सैन्य शक्ति दिखाता है। सिविल सेवा के छात्रों को समझना चाहिए कि चीन की नीतियां दुनिया की शक्ति संतुलन को प्रभावित करती हैं। भारत को आत्मनिर्भरता के लिए कदम उठाने होंगे, और दुनिया को आपूर्ति विविधता पर ध्यान देना होगा। न्यूज़ टुडे इंडिया की इस रिपोर्ट ने चीन के इतिहास, राजनीति, अर्थव्यवस्था, और सैन्य शक्ति को आसान भाषा में बताया है, जो छात्रों के लिए फायदेमंद है।

विस्तृत खनन प्रक्रिया

बेयुन ओबो में खनन के लिए मिट्टी हटाई जाती है। फिर रासायनिक तरीके से तत्वों को निकाला जाता है, जिसमें अमोनिया और सल्फ्यूरिक एसिड का इस्तेमाल होता है। यह नदियाँ और हवा को प्रदूषित करता है।

भारत की तैयारी

भारत सरकार ने खान मंत्रालय के तहत नई नीति बनाई, जिसमें कच्छ और जमशेदपुर में खनन को बढ़ावा दिया जा रहा है। ऑस्ट्रेलिया के साथ साझेदारी की भी बात चल रही है।

वैज्ञानिक उपयोग

डिस्प्रोसियम चुंबकीय मोटरों में काम आता है, जो इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए जरूरी हैं। टेरबियम लेजर और फ्लोरोसेंट लैंप में उपयोगी है। इनके बिना आधुनिक तकनीक अधूरी है।

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