न्यूज़ टुडे इंडिया | 12 जून 2025
भारत का सपना, अपने अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ल को अंतरिक्ष में भेजने का, थोड़ा रुक गया है। एक्सिऑम-4 मिशन, जो शुभांशु को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) ले जाने वाला था, अब टल गया है। कारण? स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट में लिक्विड ऑक्सीजन की टंकी में रिसाव। आइए, आसान भाषा में समझें कि क्या हुआ, लिक्विड ऑक्सीजन क्या है, और अब क्या होगा।
एक्सिऑम-4 मिशन क्या है?
एक्सिऑम-4 मिशन एक खास अंतरिक्ष यात्रा है। इसे नासा, एक्सिऑम स्पेस, स्पेसएक्स और भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने मिलकर बनाया है। इस मिशन में भारतीय वायुसेना के पायलट शुभांशु शुक्ल को ISS भेजा जाना था। शुभांशु ने 2,000 घंटे से ज्यादा समय तक विमान उड़ाए हैं। वो स्पेसएक्स ड्रैगन अंतरिक्ष यान को चलाएंगे और 14 दिन तक अंतरिक्ष में रहकर सात वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे।
यह लॉन्च 11 जून 2025 को अमेरिका के नासा केनेडी स्पेस सेंटर से होने वाला था। लेकिन रॉकेट में खराबी के कारण इसे टाल दिया गया।
लॉन्च क्यों टला?
रॉकेट को उड़ाने से पहले एक टेस्ट होता है, जिसे “स्टैटिक फायर टेस्ट” कहते हैं। इसमें रॉकेट के इंजन को कुछ सेकंड के लिए जलाया जाता है, लेकिन रॉकेट जमीन पर ही रहता है। इस टेस्ट में फाल्कन 9 रॉकेट की लिक्विड ऑक्सीजन टंकी में रिसाव मिला। साथ ही, रॉकेट के एक इंजन में भी दिक्कत पाई गई, जो रॉकेट को सही दिशा में ले जाने में मदद करता है।
स्पेसएक्स कंपनी ने कहा कि रॉकेट को ठीक करने के लिए उसे लॉन्च पैड से हटाना पड़ सकता है। इसमें एक हफ्ता या उससे ज्यादा समय लग सकता है। चूंकि यह मिशन इंसानों को ले जा रहा है, इसलिए सुरक्षा सबसे जरूरी है।
लिक्विड ऑक्सीजन क्या है और क्यों जरूरी है?
लिक्विड ऑक्सीजन, यानी LOx, बहुत ठंडा तरल पदार्थ है। इसे माइनस 183 डिग्री सेल्सियस पर रखा जाता है। रॉकेट को उड़ाने के लिए ऑक्सीजन चाहिए, क्योंकि अंतरिक्ष में हवा नहीं होती। जैसे गाड़ी में पेट्रोल जलाने के लिए हवा चाहिए, वैसे ही रॉकेट में ईंधन जलाने के लिए लिक्विड ऑक्सीजन चाहिए।
फाल्कन 9 रॉकेट में लिक्विड ऑक्सीजन को एक खास ईंधन (RP-1, जो किरमिट तेल जैसा है) के साथ मिलाया जाता है। दोनों मिलकर इंजन में धमाका करते हैं, जिससे रॉकेट को उड़ने की ताकत मिलती है।
लिक्विड ऑक्सीजन में क्या दिक्कत है?
लिक्विड ऑक्सीजन को इस्तेमाल करना आसान नहीं है। कुछ मुश्किलें हैं:
- बहुत ठंडा: इसे बहुत ठंडा रखना पड़ता है, वरना यह गैस बनकर उड़ जाता है। इसके लिए खास टंकी और पाइप चाहिए।
- रिसाव का खतरा: अगर इसमें रिसाव हो, तो यह ईंधन के साथ मिलकर आग या धमाका कर सकता है।
- धातु को नुकसान: यह कुछ धातुओं को खराब कर सकता है, इसलिए रॉकेट में मजबूत और खास धातु चाहिए।
- लॉन्च से पहले ध्यान: उड़ान से पहले अतिरिक्त ऑक्सीजन को सावधानी से निकालना पड़ता है।
टेस्ट के बाद रिसाव मिला, जो दिखाता है कि इंजीनियर कितनी सावधानी से सब जांचते हैं।
अब क्या होगा?
इसरो और स्पेसएक्स रिसाव और इंजन की दिक्कत को ठीक कर रहे हैं। इसके बाद फिर से टेस्ट होगा ताकि सब सुरक्षित हो। नासा ने कहा कि 30 जून 2025 तक या जुलाई के मध्य में नई तारीख मिल सकती है। यह ISS के शेड्यूल और सूरज की स्थिति पर निर्भर करता है, जो अंतरिक्ष यान को गर्म होने से बचाता है।
शुभांशु और उनकी टीम तैयार हैं। उन्होंने भारत, रूस और अमेरिका में सालों तक ट्रेनिंग की है। शुभांशु अंतरिक्ष में प्रयोग करेंगे, जैसे कि बिना गुरुत्वाकर्षण के शरीर पर असर देखना और पौधे उगाना। वो योग करेंगे और भारतीय चीजें ISS पर ले जाएंगे, ताकि हमारी संस्कृति दिखे।
भारत के लिए क्यों खास है यह मिशन?
शुभांशु शुक्ल का ISS जाना भारत के लिए गर्व की बात है। 1984 में राकेश शर्मा के बाद यह दूसरा मौका है जब कोई भारतीय अंतरिक्ष में जाएगा। यह मिशन इसरो के गगनयान प्रोग्राम का हिस्सा है, जो भारत को अपनी अंतरिक्ष यात्राएं शुरू करने में मदद करेगा। यह मिशन बच्चों और युवाओं को अंतरिक्ष के सपने देखने की प्रेरणा देता है।
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यह देरी छोटी सी रुकावट है, लेकिन सुरक्षा पहले है। न्यूज़ टुडे इंडिया आपको शुभांशु शुक्ल की अंतरिक्ष यात्रा और भारत के अंतरिक्ष मिशनों की ताजा खबरें देता रहेगा। हमारे साथ बने रहें!