नई दिल्ली | News Today India
आज 14 अप्रैल, डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती के मौके पर देशभर में उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है। लेकिन हर साल की तरह इस बार भी अंबेडकर जयंती केवल श्रद्धा तक सीमित नहीं रही—यह राजनीति का अखाड़ा बन गई है। हर दल बाबा साहब को “दलितों का मसीहा”, “संविधान निर्माता”, और “समाज सुधारक” कहकर अपना बताने में लगा है।
कौन क्या कह रहा है?
- भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने दिल्ली और लखनऊ में भव्य कार्यक्रम आयोजित किए, और प्रधानमंत्री ने कहा कि “बाबा साहब का सपना था एक समावेशी भारत का, जिसे हम हर घर तक पहुँचा रहे हैं।”
- कांग्रेस पार्टी ने दावा किया कि “अगर कोई अंबेडकर के विचारों को शुरू से आगे बढ़ाता आया है, तो वह कांग्रेस रही है।”
- बहुजन समाज पार्टी (BSP) की नेता मायावती ने तीखा हमला बोला: “आज जो बाबा साहब की मूर्तियों के आगे फूल चढ़ा रहे हैं, वही लोग उनके विचारों को सबसे ज़्यादा कुचल रहे हैं।”
- राजद, सपा, और अन्य क्षेत्रीय दल भी इस दिन को बड़े दलों पर निशाना साधने के मौके के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।
दलित वोट: सम्मान या रणनीति?
हर चुनाव से पहले अंबेडकर के नाम पर दलित वोटबैंक की राजनीति ज़ोर पकड़ लेती है। बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ, पार्कों के उद्घाटन, “जय भीम” के नारों और वादों की झड़ी लग जाती है।
लेकिन जमीनी सच्चाई यही है कि आज भी—
- दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं
- शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण को लेकर लगातार बहस हो रही है
- बाबा साहब की असली विचारधारा को केवल “स्मरण” तक सीमित कर दिया गया है
सोशल मीडिया पर ‘जय भीम’ ट्रेंड कर रहा है, लेकिन…
आज ट्विटर और इंस्टाग्राम पर #AmbedkarJayanti, #JayBhim, #BabasahebAmbedkar ट्रेंड कर रहे हैं। लेकिन कुछ युवा वर्ग सवाल भी कर रहा है—“क्या हम सिर्फ फोटो पोस्ट करने के लिए बाबा साहब को याद करते हैं?”
निष्कर्ष: अंबेडकर को राजनीति से ऊपर उठाना होगा
डॉ. अंबेडकर सिर्फ़ दलितों के नहीं, पूरे भारत के निर्माता थे। लेकिन आज उनके नाम पर वोटों की राजनीति हो रही है।
जरूरत इस बात की है कि हम अंबेडकर को सिर्फ़ जयंती और नारों में नहीं, बल्कि नीतियों और व्यवहार में उतारें।
📌 News Today India अपील करता है—
“बाबा साहब का सम्मान तब होगा, जब हर दल, हर नेता, और हर नागरिक उनके विचारों को ईमानदारी से अपनाए, न कि चुनावी मंच से केवल जय भीम बोले।”