भारतीय शास्त्रीय नृत्य की दुनिया में अपनी अद्वितीय पहचान बनाने वाली कथक नृत्यांगना कुमुदिनी लखिया का 2025 में निधन हो गया। 93 वर्ष की आयु में उन्होंने हमें अलविदा कहा। कुमुदिनी लखिया भारतीय कथक नृत्य की सबसे बड़ी और प्रभावशाली कलाकारों में से एक थीं, और उनके योगदान ने इस कला रूप को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
कुमुदिनी लखिया का जीवन और करियर
कुमुदिनी लखिया का जन्म 1930 में हुआ था और वे भारतीय शास्त्रीय नृत्य की प्रसिद्ध कथक शैली की मास्टर थीं। उन्होंने अपनी नृत्य यात्रा की शुरुआत बहुत कम उम्र में की थी और अपने जीवन का अधिकांश समय कथक को सिखाने और प्रदर्शन करने में समर्पित किया। कुमुदिनी लखिया के निर्देशन में कई युवा नृत्यांगनाओं ने कथक को सीखा और उन्होंने इस कला के प्रति अपने योगदान से पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाई।
उनकी नृत्य शैली में गहरी अभिव्यक्ति, तीव्र गति, और लयबद्धता की विशेषता थी, जो कथक के पारंपरिक रूप को एक नया रूप देती थी। उन्होंने कथक को एक नया रंग और रूप दिया और उसे मंच पर पेश करने के तरीके में भी बदलाव लाया।
कुमुदिनी लखिया की कला का प्रभाव
कुमुदिनी लखिया का नाम भारतीय नृत्य की दुनिया में हमेशा याद रखा जाएगा। उन्होंने अपनी नृत्य विधा को पूरी दुनिया में लोकप्रिय बनाने के लिए कई प्रयास किए। उनके कार्यों ने कथक को न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी एक महत्वपूर्ण स्थान दिलवाया। कुमुदिनी लखिया के निर्देशन में कथक को एक नई दिशा मिली और उन्होंने इसे केवल एक नृत्य नहीं, बल्कि एक भावनात्मक और सांस्कृतिक संवाद का रूप दिया।
उनके द्वारा स्थापित नृत्य विद्यालय ‘नृत्यधारा’ ने कई कलाकारों को कथक की गहरी समझ दी और उन्हें नृत्य के इस अद्भुत रूप को सिखाया। कुमुदिनी लखिया ने अपने जीवन में अनेक पुरस्कारों और सम्मानों को भी प्राप्त किया, जिनमें राष्ट्रीय पुरस्कार और सम्मान शामिल हैं।
निष्कर्ष
कुमुदिनी लखिया के निधन से भारतीय शास्त्रीय नृत्य की दुनिया ने एक महान कलाकार को खो दिया है। उनकी कला, उनके योगदान, और उनके द्वारा छोड़े गए प्रभावों का मूल्य कभी भी कम नहीं होगा। वे न केवल कथक के क्षेत्र में एक महान कलाकार थीं, बल्कि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी इस कला को समर्पित कर उसे एक नया आयाम दिया। उनका योगदान नृत्य की दुनिया में हमेशा जीवित रहेगा।